Tarun Vijay
कांग्रेसी नेताओं ने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के विरुद्ध जिस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल किया उससे सार्वजनिक जीवन में अभद्रता और अशालीनता का ही घनत्व बढ़ा है। पर इसमें कांग्रेस के लिए कुछ भी नया नहीं है। राजकाज में हिंदू जीवन मूल्यों के प्रति घोर अपमान तथा तिरस्कार का भाव रखने वाली कांग्रेस ने बाबा लोगों के राजनीति में इस्तेमाल को प्राय: एक संस्थागत रूप ही दे दिया है। डालडा में घी की चर्बी, जाली और अशास्त्रीय शंकराचायरें के अयोध्या आंदोलन में घोर हिंदू हित विरोधी बयानों का प्रचार, राम सेतु तोड़ने के विषय पर अपने घरेलू संतों के इस्तेमाल आदि की अनेक घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं।
वर्तमान समय में राजनीति के कलुष का ही यह प्रभाव है कि सार्वजनिक हित के मुद्दों पर राजनेताओं के बजाय योगी-संन्यासियों को आगे आना पड़ रहा है। उनका किसी भी राजनीतिक दल से संबंध न रखना न तो जन हित में है और न ही इससे उनके आंदोलन को व्यापक जन समर्थन मिल सकेगा। राजनेताओं पर आम आदमी का विश्वास उठ गया है। इस सार्वजनिक जीवन की शुचिता और साख बनाए रखने लिए भी यह जरूरी है कि बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे जैसे आंदोलन गैर राजनीतिक रंग के रहे और उनको समर्थन देने के द्वार सभी राजनीतिक दलों के लिए खुले रहें।
संप्रग सरकार भ्रष्टाचार के प्रश्न पर बुरी तरह घिर गई है। भ्रष्टाचार व महंगाई से ध्यान भटकाने के लिए वह नए-नए मुद्दे खड़े करती रहती है। बाबा रामदेव और उनके अनुयायियों पर मध्य रात्रि में किया गया प्रहार भ्रष्टाचार पर चर्चा को ढकने के लिए किया गया। इस घोर सांप्रदायिक आचरण पर कांग्रेस को भयंकर सार्वजनिक निंदा का शिकार होना पड़ा। इसके बावजूद दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के अपमानजनक बयान आते ही रहे। यदि बाबा रामदेव के स्थान पर उसी स्थान पर, उसी मुद्दे को लेकर कोई मुस्लिम मौलाना अनशन पर बैठा होता तो क्या कांग्रेस राज में उस पर इस प्रकार का अत्याचार होता? निश्चित रूप से उस समय कांग्रेस के यही नेता अपने हिंदू विरोधी सांप्रदायिक चेहरे के साथ उसके पास चिकन बिरयानी लेकर पहुंचते। इसी प्रकार 1967 में कांग्रेस के राज में गौहत्या निषेध के लिए देश भर से आए साधू-संतों पर भयंकर लाठी चार्ज और गोलीबारी की गई थी। मीनाक्षीपुरम की घटना पर भी कांग्रेस ने इसी प्रकार का सांप्रदायिक चेहरा दिखाया था। अयोध्या आंदोलन के विरुद्ध तथा ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के वक्त भी कांग्रेस का ऐसा ही सांप्रदायिक घृणा का रुख सामने आया था। जो कांग्रेस हिंदू संगठनों के विरुद्ध जहर उगलती है और उसके नेता उनके बारे में अभद्र शब्दों का सार्वजनिक इस्तेमाल करते हैं, वही कांग्रेस आजादी के बाद पहली ऐसी सरकार बनाती है, जिसमें भारत विभाजन की दोषी मुस्लिम लीग को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
भारतीय माटी के रंग में रंगा कोई भी पहलू कांग्रेस के लिए तिरस्कार का पात्र ही रहा है। पाठकों को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भगवान महावीर, गुरु तेगबहादुर, भगत सिंह और पृथ्वीराज चौहान जैसे महापुरुषों के बारे में असत्य और अपमानजनक टिप्पणियों से कोई ऐतराज नहीं था लेकिन जब मुरली मनोहर जोशी ने इन गलतियों को ठीक करने का प्रयास प्रारंभ किया तो इसी कांग्रेस ने उन कम्युनिस्टों के साथ भगवाकरण का शोर मचाया था जिन कम्युनिस्टों ने 1962 में चीनी आक्रमण का साथ दिया था। भगवाकरण शब्द इस प्रकार इस्तेमाल किया गया मानो यह रंग राष्ट्रीयता का शत्रु हो। अब सोनिया गांधी की सहमति के साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जो सत्ता और शासन का असैंवाधानिक मंच बन गई है, एक ऐसे हिंदू विरोधी अधिनियम को सामने ला रही जिससे हर गली मोहल्ले में सांप्रदायिक शत्रुता की दीवारें खड़ी हो जाएंगी। सांप्रदायिक हिंसा रोकने के नाम पर लाया जा रहा सांप्रदायिक हिंसा अधिनियम हिंदुओं और मुसलमानों को 1946-47 की तरह आमने-सामने शत्रुता के साथ खड़ा करने का षड़यंत्र है ताकि हर मोर्चे पर असफल पार्टी अब सांप्रदायिक नफरत फैला कर और स्वयं को मुसलमानों का एकमात्र संरक्षक जता कर उनके वोट हासिल कर सके।
इसी सप्ताह विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने घोषित किया है की हज पर जाने वाले यात्रियों का पासपोर्ट बिना किसी पुलिस जांच के बनाया जाएगा। यह एक आश्चर्यजनक बयान है। हज हो या कोई भी अन्य धार्मिक यात्रा, हर कोई सुविधा से जाए इसमें किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या हर प्रकार की असंवैधानिक प्रक्रिया इसके लिए की जानी चाहिए? क्या किसी ने कभी सुना है कि कैलाश मानसरोवर, ननकाना साहेब, ढाकेश्वरी यात्रा, शादानी दरबार की पाकिस्तान यात्रा, माता हिंगलाज मंदिर के दर्शन के लिए बलूचिस्तान यात्रा के लिए सरकार ने एक बार भी कोई अतिरिक्त सुविधा देने की घोषणा की हो? क्या इस सरकार ने कभी कटास राज मंदिर यात्रा के लिए कोई पहल की है?
इस वातावरण में राजनीतिक दलों को भी अपने अहंकार छोड़ कर देश हित में अपने कामकाज और व्यवहार को बदलने के बारे में विचार करना चाहिए। सार्वजनिक जीवन में शब्दों की शालीनता और सभ्यता का व्यवहार लोकतंत्र की जमीन होती है। लेकिन परास्त मानसिकता के साथ कांग्रेस ने इस संपूर्ण वातावरण को निहायत घटिया स्तर पर उतार दिया है।
[तरुण विजय: लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं]
Thursday, June 16, 2011
मर्यादा का उल्लंघन
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