Thursday, March 19, 2009

इस गांधी से हमें प्यार हो गया

बालासाहेब ठाकरे

यदि संजय गांधी जीवित होते तो क्या कांग्रेस पार्टी धर्मान्ध मुस्लिमों के मामले में इतनी बदचलन होती? वरूण गांधी की टिप्पणी से यह प्रमाणित होता है कि प्रश्न का जवाब निश्चित तौर पर नकारात्मक रहता। आजकल चुनावी आचार संहिता नामक एक बंधन हम सब पर लाद दिया गया है। सो संभलकर बोलो, संभलकर करो और संभलकर लिखो। ये सारे नियम-कानून केवल हिन्दुओं के लिए। जबकि धर्मान्ध मुसलमान हो जो चाहें सो करें। चुनावी आचार संहित को लेकर जिए तरह की जिद पाली जाती है, काश! जनसंख्या के मामले में भी किसी प्रकार की आचार संहिता होती तो इस देश का कल्याण हो जाता।

आज हमें होनहार, चिरंजीत वरूण गांधी ने संजय गांधी की याद दिला दी। ऐसा लगा कि वरूण गांधी के मुख से संजय गांधी का पुनर्जन्म हुआ है। उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट से वरूण गांधी चुनाव लड़ रहा है। इसके पहले मेनका गांधी इस सीट से चुनाव लड़ा करती थीं। वरूण के लिए मेनका गांधी ने यह सीट छोड़ दी। मेनका अपनी सारी उम्र बहेतू कुत्तों, बििल्लयों और सर्कस के प्राणियों की सेवा के लिए समर्पित कर दी। पर चिरायु वरूण में अपने स्वर्गीय पिता संजय गांधी के गुणों का प्राकट्य हुआ है। संजय गांधी वैसे तो विवादास्पद व्यक्तित्व वाले रहे। परंतु यह उनकी विशिष्टता थी कि उन्होंने कभी लाचार कांग्रेसियों की तरह मुस्लिम मतों के तुष्टीकरण की खातिर उनकी दाढ़ी नहीं सहलाई। गांधी-नेहरू वंश का वह `कुलदीपक´ 25 वर्ष पूर्व हिदू हित की भाषा बोल रहा था। मुस्लिम छोकरों के बढ़ते ढोंग पर प्रहार करने से वह कभी नहीं हिचका। संजय गांधी ने मुसलमानों पर अनिवार्य नसबंदी का साहसी प्रयोग किया। इससे चिढ़कर मुसलमान कांग्रेस विरोधी हो गए और कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। दिल्ली का तुर्कमान गेट देश की राजधानी में भयंकर इस्लामाबाद बन गया था। संजय गांधी ने उस तुर्कमान गेट पर दिल्ली महानगरपालिका के बुलडोजर घुमकार उसे साफ कर दिया। इसलिए संजय गांधी की प्रतिमा प्रखर राष्ट्रवादी युवा नेता और हिन्दुओं के तारणहार वाली बन गई। तभी तो संजय गांधी के विमान दुर्घटना में कई बार कुछ दाल में काला नजर आता है। युवा राष्ट्रवादी संजय गांधी का रक्त वरूण गांधी की धमनियों में सनसना रहा है।

मीडियावाले टिप्पणी कर रहे हैं कि वरूण गांधी ने जहर उगला। मैं कहता हूं कि वरूण ने हिन्दू जनमानस में दहक रही आग को उगला है। वरूण गांधी ने मुसलामानों पर टिप्पणी की और हिन्दू समाज को देा कड़े शब्द सुनाए। इससे खलबली मच गई है। वरूण ने `जय श्री राम´ का जोरदार हुंकार भरा। गोहत्या प्रतिबंध का जबरदस्त समर्थन किया। मुस्लिमों की धर्मान्धता पर प्रहार किया। सभा में मौजूद सारे लोगों ने वरूण की जय-जयकार की घोषणा की- `गोहत्या रूकवाना है, वरूण गांधी को जिताना है´ और `वरूण नहीं ये आंधी है, दूसरा संजय गांधी है´। 29 वर्ष का यह तरूण सभा में मौजूद सारे लोगों की हिन्दू भावनाओं को सचेत कर हर किसी की भावनाओं को अपनी मुट्ठी में रख पूरी सभा को प्रज्वलित कर बाहर निकलता है। यह गजब का रसायन है कि लोगों के मुंह से बरबस फूट पड़ता है कि संजय गांधी फिर से आ गया। जिस पुत्र ने कभी अपने पिता को देखा नहीं, उनके सहवास का अनुभव नहीं प्राप्त किया, वह अपने पिता की विरासत को इतना आत्मसात करता है। यह वंश परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। वरूण हिन्दू सम्मेलनों में जरूर उपस्थित होता है। छह मार्च को डालचंद इलाके में आयोजित एक सभा में उसने शब्दों की तलवार चलाई- `अगर किसी गलत तत्व ने किसी हिन्दू पर हाथ उठाया, अगर कोई हिन्दू समाज को मजबूर या कमजोर समझता है कि उनके पीछे कोई नहीं... हिन्दुओं के ऊपर हाथ उठाया तो मैं गीता की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट दूंगा।´ 29 वर्षीय यह गांधी जिस तड़प के साथ यह सब बोल रहा है उस पर विश्वास नहीं होता।

कांग्रेस पार्टी वरूण के भाषणों से सकते हैं। उस पर आचार संहिता भंग करने का आरोप लगाया गया है। वरूण ने धर्मान्ध मुसलमानों के बारे में भड़काऊ वक्तव्य दिया है, इस तरह की शिकायत निर्वाचन आयोग में की गई है। कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के भी कुछ नेता वरूण के बयान से चिंतित हैं। वास्तव में वरूण ने जिस निर्भीकता से अपना पक्षा रखा है उसको भाजपा ने समर्थन देना चाहिए। वरूण के बोलने से यदि मुसलमानों के नाराज होने की चिंता किसी भाजपाई को सता रही हो तो वह गलत है। कट्टर और वरिष्ठ हिन्दुत्ववादी आजकल प्रखर हिन्दुत्व पर बात करने से कतराते हैं। ऐसे में वरूण राजा का यह साहस अभिनंदनीय है। क्योंकि इससे मृतप्राय हिन्दू चेतना जागृत तो होगी। जब तक मानसिक संचेतना नहीं जागृत होती तब तक भुजाएं नहीं फड़का करतीं। एक बाल हिन्दू नेता ने स्पष्ट किया है कि इस्लामाबाद के कसाबों से हिन्दुओं की आत्मरक्षा संभव नहीं। इस पर इतना चिल्ल-पों मचाने की क्या जरूरत? मुख्तार अब्बास नकवी थोड़े नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से संयम बरतने का आह्वान किया। उनका कहना है कि दाढ़ी बढ़ा लेने से हर मुसलमान ओसामा बिन लादेन नहीं बन जाता। हम भी यह मानते हैं, पर दाढ़ी बढ़ाकर आप खुद को मुसलमान साबित करने का उद्यम किस खातिर करते हैं? राष्ट्रीय वृत्तिवाले मुसलमानों को रूढ़ियों और परंपराओं से ग्रस्त बाहर निकलना चाहिए। हिन्दुस्तान की संस्कृति से समरस होकर भी तुम मुसलमान बने रहोगे?

हम तुिर्कस्तान का उदाहरण इसी के चलते देते हैं। कमालपाशा ने वहां के मुसलमानों को आधुनिक व प्रगतिशील विचारों वाला बनाया और अपने देश को यूरोपीय देशों के मुकाबले खड़ा कर दिया। वहां न महिलाएं बुर्का पहनती हैं, न मुसलमान दाढ़ी और टोपी के चलते पहचाने जाते हैं और न ही वे धर्म का फालतू आडंबर ओढ़ते हैं। वहां का मुसलमान जेहाद की बांग भी नहीं देता। मुस्लिम बहुत राष्ट्र होने के बावजूद तुिर्कस्तान में चूंकि मुल्ले-मौलवियों के फतवे नहीं चलते इसलिए वह देश इतना उन्नत है। जो तुिर्कस्तान के मुसलमानों को मंजूर हो सकता है वह हिन्दुस्तानी मुसलमानों को क्यों नहीं? हिन्दुस्तानी मुसलमान तुिर्कस्तान को आदर्श माने, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबान को नहीं। तालिबान का आदर्श मानने के कारण उनका अधोपतन होता है और हिन्दुस्तान का जीवन भी नरक बन जाता है। खुद भी सुख से नहीं जीते और हिन्दुओं को भी सुख से नहीं जीने देते। हम भी यही कहते हैं कि कोई दाढ़ी रखने से सच्चा मुसलमान नहीं होता। कसाब नाम का जो मुसलमान पाकिस्तान से मुंबई हमला करने आया था वह तो एकदम चिकने-चुपड़े चेहरे से मुंबई को श्मशान करने घुसा था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों ने कांग्रेसियों और उनके छद्म सेकुलर साथियों की सुविधा के लिए अपनी दाढ़ियां बढ़ा ली हैं ताकि वे मौके-बेमौके उसे सहलाने का सुख लूट सकें? सवाल मुसलमानों पर टीका-टिप्पणी करने का नहीं है। सवाल है सच बोला जाए या नहीं? आचार संहिता की बेड़ियां क्या सत्य को बंदी बना लेंगी? वरूण भावातिरेक में कुछ बोला होगा लेकिन उसमें ऐसा क्या है जिस पर इतना कोहराम मचाया जाए? इस देश की बर्बादी किसके कारण हो रही है? खून की नदियां कौन बहा रहा है? बमकांड कर हिन्दुओं के चीथड़े कौन उड़ा रहा है? वरूण गांधी इस देश का नौजवान है। उसके मन में लंबे अरसे से दबी कसक बाहर आई है। इसलिए क्या से अभियुक्त के पिंजरे में खड़ा कर फांसी पर लटकाया जाना चाहिए?

खुद भारतीय जनता पार्टी एक कठिन कालखंड से गुजर रही है। दिल्ली में उसकी अंदरूनी कलह पर रोज खबरें छप रही हैं। हम उस पर क्या टिप्पणी करें। हम इतना ही कह सकते हैं कि `यह उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है। हमारे देश में इसी को लोकतंत्र कहते हैं।´ वरूण राजा भी उसी लोकतंत्र का डंका बजाते हुए बरसे हैं। उनके बरसने पर इतने बांधी न बनाएं। बिहार भाजपा के एक नेता शाहनवाज हुसैन ने मांग की है कि वरूण गांधी माफी मांगे। उनका यह बयान एक भाजपा नेता का है या मुस्लिम नेता का? शाहनवाज एक तरूण नेता हैं हम भी उन्हें पहचानते हैं। वाजपेयी मंत्रिमंडल में वह नागरिक उड्डयन मंत्री थे। उस समय उनका `मातोश्री´ पर आना जाना था। शाहनवाज मियां वरूण के वक्तव्य को ठीक से समझ लें। वरूण किससे माफी मांगे, भारतीय जनता पार्टी से या मुसलमानों से? हमें तो उसकी जरूरत नहीं लगती। वरूण ने एक भाषण में कहा- `मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं पर उसकी अपेक्षा एक हिन्दू हूं, यह कैसे भूलूं?´ इसमें आक्षेपाएं क्या? इस देश में हर धर्म का नेता राजनीति में अपने धर्म के साथ खड़ा है। कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई बौद्ध पर हमारी तरह अगर कोई हिन्दू होकर खड़ा हो जाए तो सारे उसके विरोध में क्यों चिल्लाने लगते हैं? वरूण के बारे में वही हो रहा है। कम से कम भारतीय जनता पार्टी वरूण को हवा के हवाले न करे। उसकी उम्र कच्ची है। उसके मन में हिन्दुत्व की चिंगारी प्रज्वलित हुई है, उसे न बुझाओ। यह गांधी सचमुच अलग है। एक गांधी ने कहा `हिन्दुओं, तुम्हारे गाल पर कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो।´ इस अहिंसा ने इस देश और हिन्दुओं का घात किया। लेकिन नए युग का गांधी कह रहा है `हिन्दुओं पर उठनेवाले हाथ कलम कर दिए जाएंगे, हिन्दुओं मार मत खाओ।´ हम इस गांधी के प्रेम में पड़ गए। आचार संहिता होने के बावजूद हमें प्रेम हो गया। हम वरूण को शुभाशीर्वाद देते हैं।

(सामना में प्रकाशित बालासाहेब ठाकरे का संपादकीय)

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